क्या-क्या याद करूँ !
यहाँ तो सारा बदन टूटा फूटा पड़ा है !
स्कूटर-बाइक से मेरे बहुत एक्सीडेंट हुए, इनमें कई प्राणघातक थे, लेकिन हर बार मैं बिना किसी बहुत बड़ी टूट-फूट या हॉस्पिटलाइज हुए, सुरक्षित बच गया !
पता नहीं क्यों, ईश्वरीय कृपा, लोगों की सद्भावनाएँ या संयोग, क्या रहा, या तीनों रहे !!
एक एक्सीडेंट 1995 में 'LML वेस्पा सेलेक्ट' से बड़ा ही रोचक हुआ था। अपने दोस्तों को सुनाया, तो वे आज भी उसका बतंगड़ बना कर मेरा मजाक उड़ाते हैं ! अविश्वसनीय समझ कर, गल्प समझ कर !
उस साल ईद फरवरी में थी,
मुझे अपने दोस्त के फुफेरे भाइयों की शादी में, दोस्त के साथ सहारनपुर से सिसौली (मुजफ्फरनगर) जाना था। उसके परिवार के लोग भी थे, क्योंकि ईद के दिन सार्वजनिक वाहन नहीं चलते थे अतः दुपहिया वाहनों से जाना सुनिश्चित हुआ। मेरे वाले स्कूटर में मेरे साथ, मेरे दोस्त संजय ने जाना था।
लेकिन सुबह ही मेरी पड़ोसन आंटी पीछे पड़ गयी, उनका कोई अर्जेंट काम था, शायद कोई बीमार था, उन्हें नकुड़ के पास कहीं जाना था। नाम उनका था कैलाश ! पंजाबन थीं, उनकी सास उनको जब आवाज लगाती, तो 'ओए लाश.. ' सुनाई देता ! विशाल काय डील-डौल, कृष्ण रंग, और रोज शेव बनाती थी, लेकिन आवाज ! आय-हाय ! कंठ इतना सुरीला, कि खाना बनाते हुए किचन से जब तान छेड़ती, "सारंगा तेरी याद में...." तो दिल में एक हूक सी उठती !
मैं भी अगर इधर अपने किचन में होता(मैं पापा के साथ रहता था, वो हफ्ते में एक या दो दिन ही घर पर होते थे) तो खुद को रोक नहीं पाता, और फिर डुएट शुरू हो जाता, एक लाइन वो, एक मैं !
बिल्डिंग में 12 किरायेदार थे, सब झूम उठते थे, मोहल्ले वाले भी सुनते थे !
खैर, हम अपनी कहानी पर वापस आते हैं।
उस दिन ईद की वजह से सार्वजनिक वाहन चल नहीं रहे थे, उन्होंने मुझे नकुड़ छोड़ आने का आग्रह किया। 'न' कहना आज भी मेरे लिए कठिन है, मैं चल भी दिया। उनको नकुड़ से थोड़ा पहले कहीं छोड़ा, फिर सोचा, नकुड़ अपना क्लास फेलो दोस्त अहते शाम उल हक रहता था, उसने बहुत इसरार करके बुलाया था, मैंने सोचा, चलो यहाँ तक आ गया, तो नकुड़ भी हो आऊँ, अहतेशाम भी खुश हो जाएगा। सच में ही वह बहुत खुश हुआ, शीर-कोरमा, सिवइयां खिलाई, बहुत ही स्वादिष्ट ! वो लोग बहुत अमीर और जमीदार टाइप के लोग थे वहाँ के, बहुत आदर सत्कार किया, प्रभावित हुए कि मैं सहारनपुर से स्पेशली उनके बुलावे पर आया। अब मैं उन्हें असली बात क्यों बताता भला !!
जल्दी से वहाँ से निकला, उस समय फोन भी नहीं थे, देर हो गई थी, वे लोग(संजय और फैमिली) मेरा वेट कर रहे होंगे, ये सोच कर खाली सड़क पे स्कूटर पेल दिया, स्कूटर नया था, बड़े भाई का(वो शहर से बाहर थे), फिर वेस्पा सेलेक्ट, बहुत ही शानदार ! "माले-मुफ्त, दिले-बेरहम"
80-100 पे उड़ा दिया !
आगे मुसलमानों से भरी एक बस जा रही थी, उसका ड्राइवर लड़का सा ही था, उसने बिल्कुल भी साइड नहीं दी, बहुत हॉर्न बजाया, लगभग 10 मिनट ये सिलसिला चला। बैक व्यू मिरर में वो हंसता नजर आ रहा था, बाकी सवारियाँ, लड़के लोग भी खिड़कियों से निकल कर मुझे चिढ़ा रहे थे, वो जान बूझ कर ऐसा कर रहे थे। 20 साल की उम्र, जवानी का जोश, नया वेस्पा जो हवा से बातें करता था ! ऊपर से देर हो रही थी !
मैंने जबरन साइड से ओवरटेक करने की ठान ली ! रोड सिंगल थी, साइड में ईंटें बिछी हुई थी, ईंटें, जगह जगह से ऊबड़खाबड़ थीं, गड्ढे पड़े हुए थे। जोश में 80 की स्पीड में ओवरटेक करने लगा, बस का ड्राइवर क्योंकि मस्ती कर रहा था, वो और मेरी तरफ आ गया, और मैं उन ईंटों, गड्ढों में चला गया। गड्ढों की वजह से स्कूटर कई बार उछला, और आखिर में उसका पिछला शॉकर जहाँ चेसिस से जुड़ा रहता है, ईंट से टकराकर वहाँ से उखड़ गया, और स्कूटर की गद्दी बैठ गयी, मैं हवा में उछल गया !
बाय गॉड, मैं इतना ऊपर उछला कि मैं खिड़की से गाड़ी के अंदर झाँक सकता था।
(इसी का मजाकिया किस्सा मेरे दोस्त बना कर सुनाते हैं, हर बार कहानी बढ़ती जाती है, अंशुल ने हवा में ड्राइवर से बात की, ओए, साइड क्यों नहीं दे रहा, ड्राइवर ने जवाब दिया, आदि आदि, ब्ला ब्ला ब्ला !)
स्कूटर काफी दूर जाकर कलाबाजियाँ खाता, एक ओर गिर गया, और मैं बुरी तरह नीचे गिरा !
शुक्र है, बस के नीचे न आया, विपरीत दिशा में गिरा।
गनीमत रही, खेत में हल लगा था, सड़क से बिना किसी गैप के खेत था और खेत में गेहूँ बोने के लिए ताजा हल लगा था, मैं खेत में गिरा।
पसलियाँ ठुक गयी थीं, सारे बदन में हर जगह चोट थी ! लेकिन भुरभुरी मिट्टी ने जान बचा ली, तब हेलमेट भी नहीं होता था, मौत सुनिश्चित थी !
बस वालों ने खुशी में बहुत जोर का शोर किया, ये मुझे याद है, और बस ये जा और वो जा !
काँखता, कराहता, खड़ा हुआ, मदद करने वाला कोई नहीं था। स्कूटर को देखा, बॉडी टायर से चिपक गयी थी, इंजिन स्टार्ट करके पैदल भी नहीं चल पा रहा था, पिछले हिस्से को हाथ से उठा कर फिर धकेलो, तो सरकता था, वरना बॉडी टायर से चिपक कर ब्रेक लगा देती थी। घायल अवस्था में यह बहुत कठिन कवायद थी। शहर 3 किमी रह गया था, पता नहीं कैसे मैं स्कूटर को खींचता हुआ शहर की सीमा तक लाया, धूप सर पर चमक रही थी। भगवान जाने कितना टाइम हो गया था, न मेरे पास घड़ी थी, न कोई सड़क पर था जिससे टाइम पूछता ! यहाँ लेबर कॉलोनी में एक दोस्त का घर था, स्कूटर वहाँ खड़ा किया, और उस दोस्त की साईकल मांग कर, आवास विकास,(लगभग 12 से 14 किमी) वहाँ जो लोग इन्तजार कर रहे थे, उनको बताने कि मैं नहीं जा सकता शादी में, आप लोग चले जाओ, पहुँचा। इतना चोटिल होने के बाद, कैसे मैंने साईकल चलाई होगी !!
लेकिन वहाँ वे दो दुपहिया वाहन लेकर मेरा वेट कर रहे थे, वे बिल्कुल न माने !
नहीं, जाना तो पड़ेगा, ऐसे कैसे !!
एक बाइक 3 सवारी लेकर रवाना कर दी गयी, क्योंकि अब मेरा स्कूटर जा नहीं सकता था ! एक जन बजाज चेतक पर मेरे साथ, साईकल वापस करने वापस लेबर कॉलोनी आया। लेकिन मूर्खता ये कि इस बार भी साईकल मैंने ही चलाई !
सारा शीर-कोरमा निकल गया !!
फिर मेरे रूम पर गए, वहाँ कपड़े बदले, फिर आवास विकास, वहाँ से बजाज चेतक पर तीन लोग ! पेपर मिल वाली रोड से शॉर्टकट से चल पड़े ! सारा रास्ता गड्ढों से भरा, हर गड्ढे पे मेरा दम निकलने को होता, क्योंकि बदन बुरी तरह टूटा-फूटा हुआ था !
रास्ते में क्लच की तार टूटी, पंचर हुआ, फिर ब्रेक फेल हो गया !! हम लोगों को देख डोर से ही चिल्लाने लगते, "हट जाओ, ब्रेक नहीं है !" लोग कूद के हट जाते, और हमें हैरानी से देखते रह जाते ! दो छोटे एक्सीडेंट भी हुए ! एक गन्ने का ट्रक पलटा, जिसके नीचे आते-आते बचे ! फिर एक कस्बे में हिन्दू मिस्त्री मिला, उससे स्कूटर ठीक करवाया, क्योंकि मुसलमानों की तो सब दुकानें बंद थी और इस धंधे में अधिकतर मुसलमान ही होते हैं !
राम राम करते रात में पहुंचे !
सब चिंतित थे !
हम भाती थे, भात लेकर जाना था, दो भाइयों की शादी दो बहनों से हो रही थी।
रात में दर्द के मारे नींद नहीं आयी, खटिया पे करवटें बदल बदल कर दूसरों की नींद भी खराब की, क्योंकि खटिया आवाज करती थी !
कोई दवा न दारू !
अगले दिन टिकैत से भी मुलाकात हुई, जिसने कन्याओं की विदाई में उन्हें 2-2 रुपये के दो नोट दिए ! जबकि बाकी सारा गाँव बड़े नोट दे रहा था, 20 से कम शायद ही किसी ने दिए हों ! उस समय वो हमारे लिए राष्ट्रीय स्तर का आदमी था, उसकी आवाज पूरे देश में सुनी जाती थी ! विस्मय के कारण ये घटना मुझे आज भी याद है !
ये मेरे बहुत सारे रोचक एक्सीडेंट्स में से एक था, जिसको मेरे दोस्त महफिलों में आज भी चाट-मसाला लगाकर सुनाते हैं, और लोग चटकारे लेकर सुनते हैं !!
कभी समय मिला, तो अपने मजेदार एक्सीडेंट्स के और भी रोचक किस्से सुनाऊँगा !!