Thursday, October 12, 2017

ट्रेल्स पास यात्रा, भाग --2, "देहरादून से यात्रा आरम्भ"


    संजय सेमवाल जी जीप अड्डे, रिस्पना पुल,देहरादून में इंतजार कर रहे थे. जीप में सीट भी रोक ली थी. संजय सेमवाल जी, जिन्हें आगे पोस्ट्स में संजू कहा जायेगा, उत्तराखंड शिक्षा विभाग में लेक्चरार हैं, सम्प्रति हरिद्वार में सर्व शिक्षा अभियान के जिला समन्वयक हैं. 21 साल पुराने दोस्त हैं और हमने कई यात्राएं साथ में की हैं.
  यात्रा की उत्कंठा में हमारा बातों का सिलसिला शुरू हो गया था. जीप चल पड़ी थी. मुझे जब भी किसी वाहन से, जिसे मैं खुद न चला रहा होऊं, (और ऐसा अवसर कम ही मिलता है), लम्बी दूरी की यात्रा करनी हो, तो मैं सोने का अवसर नहीं गवाना चाहता. और आनंद भी आता है, यह बात दीगर है कि यात्रा की समाप्ति पर गर्दन और एकाध जगह से खोपड़ी भी, दर्द कर रहे होते हैं. लेकिन आज नींद कोसों दूर थी. इसी की चर्चा करते रहे कि कैसी जगह होगी ! कहाँ कहाँ से जाना होगा ! क्या क्या कठिनाइयाँ होंगी ! आदि आदि! एक बात संजू को और परेशान कर रही थी कि उसकी छुट्टी स्वीकृत नहीं हुई थी. अधिकारी ने जान बूझ कर टांग अड़ा दी थी. उसका झगडा हो गया था, और वह बिना छुट्टी स्वीकृत कराये ये कह के आ गया था कि जाऊँगा तो मैं जरुर, तुमसे जो होगा वो कर लेना ! उसने आते समय मन्नत मांगी थी कि हे भगवान ! वापस आकर मैं इस अधिकारी की सूरत न देखूँ, और वाकई में उसकी दुआ में असर था या जाने संयोग, वापसी में जब हम फोन के नेटवर्क में आये, उसे सबसे पहले यही खबर मिली कि उस अधिकारी का तबादला हो गया है !
  नई टिहरी पहुँचने पर अनुराग मिला, अनुराग पन्त भी 20 साल पुराना, घनिष्ठ मित्र है, और हमने अधिकतर यात्राएं साथ में की हैं. हमको वो उस होटल में ले गया जहाँ सब ने इकठ्ठा होना था और अगले दिन यहीं से रवानगी होनी थी. उत्तरकाशी से 8 पोर्टर आ चुके थे. इनमे 1 उत्तरकाशी का, और 7 गोरखे थे. कुछ साथी वहाँ बैठे थे, लेकिन अभी परिचय नहीं था. ग्रुप लीडर से मैं एक बार मिल चुका था पहले. शिव सिंह नेगी जी, उम्र 58 साल,  'हितम' (हिमालयन ट्रेकर्स एंड माउन्टेनियर्स) के संस्थापक. जवानी से अब तक न जाने कितने ट्रेक, कितने अभियान, कितने पर्वतारोहण कर चुके हैं. जिस होटल में हम एकत्र हुए थे, इसके मालिक सुरेन्द्र सिंह राणा जी भी हमारे दल के वरिष्ठ सदस्य थे. ये भी करीब 56 साल के हैं और इनको भी बहुत अनुभव है. कुछ साथी रूडकी से हमें सिर्फ सामान पहुंचाने टिहरी आये थे. इनका ट्रेक पर जाना संभव नहीं हो पाया था. ये लोग तुरंत ही वापस भी चले गए थे. नेगी जी ने, पोर्टरों को लाइन अप किया और उनकी ब्रीफिंग की. उनका एक्स्पीरिएंस पूछा. उत्तरकाशी वाला तो था ही प्रोफेशनल, लेकिन बाकी गोरखों ने बताया कि वो केदारनाथ, निम (नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग)  के साथ भी गए हैं. एक गोरखा कालू, जो जवान छोकरा था, जादा से जादा 20-21 साल का, कह रहा था कि उसने कालिंदी और एवरेस्ट बेस कैंप कर रखा है. उस समय तो यकीन न करने का कोई कारण नहीं था, लेकिन बाद में ट्रैक पर उसकी हरकतों से मुझे संदेह सा हुआ. उनको अडवांस पैसा दे दिया गया था, अतः नेगी जी ने उनसे कहा कि, जिसके पास चश्मा और ढंग का जूता नहीं है, अभी बाज़ार जा के ले आओ. गोरखे बाज़ार चले गए. हम लोग यात्रा के सामन पैकिंग में लग गए. कार्य प्रभार बाँट दिए गए, किसी को राशन का संभालना था, किसी को टेंट आदि, तो किसी को टेक्निकल सामान का. लगभग 2 से 3 घंटे तक पैकिंग का काम चलता रहा. फिर हम भी बाज़ार गए, ज़रूरी दवाएं आदि लीं, कुछ और छूटा-पूटा सामान लिया. उसके बाद होटल में मीटिंग हाल में मीटिंग हुई. पहले सब लोगों का आपस में परिचय हुआ. फिर सभी ने कुछ न कुछ कहा. नेगी जी ने कहा कि भई अगर किसी भी मेंबर को कोई भी प्रॉब्लम है, तो निस्संकोच अभी बता दे. बाद में अगर किसी को कोई दिक्कत हुई, तो एक आदमी की वजह से अभियान फेल नहीं होना चाहिए. किसी को दिक्कत नहीं थी. हाँ लेकिन मुझे थी. सोचा कि बता दूँ ? अनुराग को चुपके से बताया, उसने कहा कि चुप ही रह. दरअसल पिछले कुछ दिनों से अल्सर दर्द कर रहा था. जिसकी मैं करीब 15 दिन से दवाइयां खा रहा था. दूसरा एक और पसलियों के नीचे कहीं अंदरूनी भाग में दर्द हो रहा था, मैं अल्ट्रासाउंड भी करवा आया था, लेकिन रिपोर्ट नार्मल थी. काफी देर विचारों का आदान प्रदान हुआ, फिर गुड नाईट हो गयी. कुछ लोग होटल में ही रुके थे, कुछ अपने घर चले गए थे. संजू अपनी पत्नी के पास चम्मा चला गया था. मैंने अनुराग के घर रुकना था, क्योंकि अभी हमें अपनी पर्सनल पैकिंग भी करनी थी. मुझे अपने पैकिंग में अनुराग की जरुरत थी, क्योंकि मैं कभी भी सामान कम नहीं कर पाता. वहाँ भी मैं बहुत सामान ले गया था, जिसमे आधा टिहरी छोड़ना पड़ा.
   पैकिंग में हमें शायद 2 बज गए थे. नींद का समय बीत चुका था, अतः काफी देर तक नींद नहीं आई. अगर ढाई बजे भी आई होगी, तो सुबह साढ़े 5 का अलार्म था. 7 बजे रवानगी थी. पर्यटन मंत्री ने फ्लैग ऑफ करना था, अतः वहां पे कुछ तैयारियां भी करनी थी. नींद के आगोश में आते ही पर्वतारोहण शुरू हो गया था. जो सामान मैंने पैकिंग करते समय आज पहली बार देखा, तरह तरह की रोप, कैरीबिनर, आइसबूट, क्रेम्पोन्स, गेटर्स आदि, उन्हीं समस्त अस्त्र-शस्त्रों से लैस मैं वर्टिकल लिमिट मूवी की भांति हिमालय में रस्सियों से लटका हुआ था !!!! और गिरता जा रहा था, गिरता जा रहा था, अंतहीन गहरे गर्तों में !!!!

(जारी.....)
अगला भाग......शीघ्र ही.....
                                           अनुराग पन्त और मैं ट्रेल्स पास पर(ऊपर)
                                          संजय सेमवाल और मैं ट्रेल्स पास पर(ऊपर), नीचे मैं.

2 comments:

  1. नींद मुझे चलती गाडी में नहीं आ पाती, ज्यादा समय होगा तो झपकी आ सकती है।
    जो होगा देखा जायेगा। अच्छा हुआ अधिकारी का ही पत्ता साफ हो गया। नालायक अफसर।
    अस्त्र शस्त्रों से लैस होकर ही विजेता बना जाता है।

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  2. चलते रहिये ििनतजार रहेगा अलगे पार्ट का

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