Saturday, October 7, 2017

ट्रेल्स पास यात्रा, (Traill's Pass Expedition 2016 )

ये यात्रा पिछले साल की थी. जैसा कि हमेशा ही होता आया है ! मुझ आलसी को, यात्रा से वापसी में तो बड़ा जोश रहता है, कि इस बार ये यात्रा लिखनी है, और पिछली भी सारी लिख डालनी है, लेकिन हर बार टांय टांय फिस्स ! किसका लिखना, किसका कुछ, जिंदगी अपने घिसे पिटे ढर्रे पर फिर घिसटने लगती है, और फिर वही--
एक बार मैंने टिहरी में अपने एक बुजुर्ग भाईसाहब को पूछा था, कि ''और भाईसाहब, क्या हो रहा है'', तो उन्होंने बड़ा ही खूबसूरत शायराना ज़वाब दिया था !-
"सुबह हो रही है शाम हो रही है,
ज़िन्दगी यूँ ही तमाम हो रही है !''

और अगली बार मिलने पर जब उन्होंने पूछा था कि, ''और भई, क्या हाल हैं ?"
तो हमने भी उसी अंदाज़ में पलट वार किया था--
'वही हड्डी है, वही खाल है"

पिछले साल की बात है, शायद अप्रैल या मई में अनुराग ने ट्रैक के बारे में पूछा था, कि शिव सिंह नेगी भाईजी एक ट्रैक का प्लान कर रहे हैं, वहां चलें क्या ? मैंने पूछा था कि कौन नेगी जी ? तो उसने बताया था कि अरे यार वही, जिन सीनियर लोगों की मैं बात करता रहता हूँ, कि जिनका एक ग्रुप है और जो लोग जाते रहते हैं. अच्छा अच्छा कह कर मैंने उदासीनता से बात को आई गयी कर दिया था.
    यात्रा की ये विशेषता है. घुमक्कड़ी के कीड़े को जिंदा रखने के लिए आपको हर साल कम से कम दो बार कहीं जरुर निकलना चाहिए. यदि एक साल खाली निकल गया, तो ये कीड़ा भी कहीं दिमाग में गहरे जाकर सो जाता है, और फिर जगाने से भी आलस में अलसाया उठेगा और कोई रूचि नहीं दिखायेगा.
  मेरा एक साल फालतू चला गया था. राज जात मैं जा नहीं सका था. अगर आपदा न आती  और सही समय पर राज जात हो गयी होती, तो मैं तो उसका 12 साल से इन्तजार ही कर रहा था ! 2012 में जब होनी थी, तब मल मास(अधिक मास ) के कारण नहीं हुई थी, और 2013 में समूचे उत्तराखंड में आई आपदा के कारण स्थगित हो गयी थी. उन दोनों साल पूरी पूरी तयारी थी. 2012 में तो हमने फिर भी खतलिंग-मासरताल कर लिया था. लेकिन 2013 भी ऐसे ही चला गया. 2014 में फिर से पूरी तैयारियां की, जून में 10 किलो वज़न घटाया, लेकिन दो कारण हो गए, जुलाई में घुटनों में बहुत दर्द हो गया, डॉक्टर ने कहा भले मानस ! दौड़ने की क्या ज़रूरत थी, सिर्फ तेज चाल में पैदल चल के भी तो वर्कआउट किया जा सकता था ! दूसरा, उन्ही दिनांकों को पंचायत के उपप्रधानों के चुनाव में ड्यूटी लग गयी ! और 15 अगस्त 2014 में हमारे यहाँ आई आपदा के कारण पूरी सड़क बह गयी थी, 12 किमी पूरा पैदल चलना था. मित्रमंडली चली गयी थी, और मुझे कहा गया था कि तुम हमसे बाद में आके मिल जाना. मैं चुनाव ड्यूटी से आकर जा सकता था, कागज-पत्तर कोई साथी भी जमा करवा सकता था, निर्वाचन निर्विरोध हुआ था, अतः कोई टेंशन की बात नहीं थी. मशहूर घुमक्कड़ और हिंदी के यात्रा ब्लॉगर, संदीप पंवार जाट देवता से संपर्क भी हुआ, उन्होंने कहा भी कि मैं लेट निकल रहा हूँ और यात्रा को बेदनी में पकड़ लेंगे, चले चलो ! लेकिन घुटनों के दर्द और घरवालों के दबाव के कारण मैं पीछे हट गया.  इस तरह मैंने वह अवसर गवांया जिसका मुझे 14 साल से इंतजार था, और 2026 में शायद मैं इतना फिट रहूँगा भी नहीं कि इतनी कठिन यात्रा पर जा भी सकूँ !
  तो जब जुलाई में अनुराग ने फिर संपर्क किया कि फोटो और ID दो, यात्रा की परमिशन के लिए अप्लाई करना है, तो मैंने अनिश्चय की स्थिति में दे भी दिया. पैसे उसने खुद ही जमा कर दिए थे. कुछ दिन बाद जब अनुराग ने बताया की 12 लोगों की परमिशन आ गयी है, मैं तब भी श्योर नहीं था, क्योंकि मुझे लगता था कि घरवाले बिलकुल भी नहीं जाने देंगे ! फिर भी 15000 जमा करवा दिए थे.
  परमिशन आने के बाद पहले माँ से भूमिका बनाई, कि ऐसे ऐसे करके मेरा चयन हुआ है, और मुझे जाना है, तो आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने इजाजत दे दी, कि यदि तुम इस ऐतिहासिक अभियान को कर पाते हो तो मुझे तो अपने बेटे पर गर्व ही होगा . अब मुख्य समस्या श्रीमती जी की अनुमति की थी. खतलिंग यात्रा संपन्न होने के बाद तो उन्होंने पूरा ड्रामा रच दिया था. फिर ये तो उससे भी खतरनाक अभियान था ! लेकिन अभियान की खतरनाकता का तो उन्हें कोई अंदाज भी नहीं हो सकता था, क्योंकि उन्हें तो इस बात पर भी आश्चर्य होता है, ऐसी जगह भी कोई हो सकती है, जहाँ फोन के सिग्नल नहीं होते ! खैर एक दिन अच्छे मूड में देख कर डिटेल बता ही दी कि 10 दिनों के लिए हिमालय पर जाना है. पता नहीं कैसे उस दिन उनका मूड इतना अच्छा था कि उन्होंने भी इजाज़त दे डाली कि, "जा सिमरन जा ! जी ले अपनी ज़िन्दगी !" शाहरुख़ खान की एक फिल्म में एक डायलॉग भी था शब्दशः तो नहीं पर कुछ कुछ ऐसा ही था शायद, "अगर तुम किसी चीज को शिद्दत से चाहोगे तो पूरी कायनात तुम्हें उस शै से मिलाने में जुट जाएगी"
  बस ! फिर क्या था ! उस दिन से तो दिल बल्लियों उछलने लगा ! हर समय बस एक ही आशंका लगी रहती कि ऐन समय पर ऐसा कुछ न हो जाय जिससे जघ्न में विघ्न हो जाय ! डिपार्टमेंट से स्पेशल कैजुअल लीव के लिए अप्लाई भी कर दिया था, छुट्टी स्वीकृत भी हो गयी थी. थोडा थोडा करके खरीददारी भी कर डाली थी. लेकिन फिर ऐन समय पर एक दिक्कत आन ही पड़ी ! हुआ यूँ कि बड़े भाई किसी काम से दिल्ली आये थे तो परिवार से मिलने, देहरादून भी चले आये. उनको वापसी के लिए रेलगाड़ी में छोड़ने जाना था कि अचानक अनुराग का फोन आ गया कि टीवी खोल के फलां चैनल को देखो, हमारी यात्रा के बारे में आ रहा है. चैनल लगाया तो शिव सिंह नेगी भाई जी के इंटरव्यू पे आधारित एक न्यूज़ रिपोर्ट आ रही थी कि ऐसे ऐसे करके एक अभियान दल ट्रेल्स पास पर जाने वाला है. और न्यूज़ चैनल अपनी रिपोर्ट की रोचकता को बढ़ाने के लिए न जाने कहाँ कहाँ से, इन्टरनेट के वीडियो डाल रहा था, जिनमे ग्लेशियर टूटते हुए दिखा रहा था, ऐवलांज आदि दिखा कर उसने विडियो को काफी डरावना बना दिया था, जिसको देख के घरवाले डर गए.
   खैर, हुआ जी, जैसे भी हुआ ! लास्ट वाले दिन की खरीददारी करने तो श्रीमती जी भी साथ गयी थी, उस दिन जूते कपड़े, स्लीपिंग बैग, टेंट आदि लिए थे. जूता 5000 का ले लिया लेकिन वो गलत सौदा ही साबित हुआ. उससे पहले भी एक फौजी लॉन्ग बूट लिया था लेकिन 2 घंटे पहन के ही नानी याद आ गयी थी !
     मेन समस्या चश्मे की आ रही थी. जो स्नो ग्लासेज बाज़ार में उपलब्ध थे, वो नजर के नहीं हो सकते थे, और ऐसा चश्मा मिल नहीं रहा था जो हमारे नज़र के चश्मे के ऊपर चढ़ सके. नज़र का चश्मा फोटोक्रोमैटिक तो था, मगर सामान्य धूप के लिए. बर्फ की चमक से बचने को तो बर्फ के लिए स्पेशल बना चश्मा ही चाहिए था ! काफी दुकानों पे भटके. दोनों बच्चे साथ थे जो थक कर, बोर होकर परेशान हो गए थे, और हमें भी परेशां कर रहे थे. फिर घंटाघर की एक दुकान पर एक चश्मा मिला, जिस पर चुम्बक से एक बाहरी चिपकाने वाला काले लैंस का अटैचमेन्ट था, जिसे जब चाहो लगा लो, जब चाहो हटा लो ! तुरंत बनवाने को दे दिया, हालाँकि साढ़े चार हज़ार का था और मैंने इतना मंहगा चश्मा कभी पहना ही नहीं था. लेकिन इसका एक फायदा था कि इसने सामान्य तौर पर भी काम आना था. अनुराग को फोन करके पूछा तो उसने भी तुरंत सहमति दे दी कि मेरे लिए भी एक बनवा दो. बाई चांस दूकानदार के पास दो ही पीस थे. लेकिन अनुराग के  चश्मे का नंबर चाहिए था. वो उस समय नई टिहरी बाज़ार में था और पैदल था ! फिर वो घर गया, बड़ी मुश्किल से नंबर ढूंढा, मुझे व्हाट्सऐप किया. इतनी देर मैं सपरिवार दुकान पर ही बैठा रहा. बच्चे भी परेशां हो गए और दूकानदार भी, उसे भी घर जाना था, रात के 9 बज चुके थे. चश्मा आज ही बनने को देना था, ताकि कल मिल सके. श्रीमती जी को ये चिंता थी कि घर पर पापाजी भी हैं, उन्हें भूख लग गयी होगी ! फिर खाना भी बाज़ार से बनबनाया ही ले जाना पड़ा. अगले दिन शाम को चश्मे तैयार मिल गए थे. कुछ सामान अनुराग ने और भी बताया, वो भी बाज़ार से ले लिया था. अब अगले दिन का इंतजार था. रविवार के दिन का, जब मुझे और संजय सेमवाल को देहरादून से टिहरी पहुंचना था. वहीँ पूरी टीम ने मिलना था. उनके निर्देश थे कि सुबह सब जल्दी पहुंचें, क्योंकि पैकिंग भी करनी थी, अन्य तैयारियां भी करने को थी.
  राम राम करके रात गुजरी ! नींद किसे आनी थी ! रात रात भर तो गूगल मैप देखता रहता था, उस जगह को समझने की कोशिश करता रहता था. रोमांच के कारण दिल धाड़-धाड़ बज रहा था. मैं अपने स्कूल से सारा हिसाब-किताब सब सहायक अध्यापक को समझा के आ गया था. स्कूल से निकलते समय मैं भी जरा भावुक सा हो रहा था, हो सकता है दुबारा इस स्कूल को, इन बच्चों, सहकर्मियों को मिल पाऊं या नहीं ! कौन जाने !
  सुबह बहिन और उसका पति नाश्ते पर मिलने आने वाले थे. वो जयपुर घूम के आये थे, तब से मिले नहीं थे. वैसे वो लोग शाम को आने वाले थे, फिर उन्होंने जब सुना कि मैं यात्रा जा रहा हूँ, तो सुबह ही मिलने आने का प्रोग्राम बना दिया था. लेकिन जब वो लोग साढ़े ग्यारह बजे तक नहीं आये, तो मुझे निकलना पड़ा. इसी बात का आजतक अफ़सोस है, ताजिंदगी रहेगा ! काश मैं 15-20 मिनट और रुक जाता ! सबको लगता था, और मुझे भी कि, मैं लौटूं न लौटूं ! हो सकता है ये आखिरी दर्शन हों ! लेकिन मैं कपिल(बहनोई) को आखिरी बार सही सलामत न देख पाया. जब लौटा तो वो ICCU में था, बेहोश ! और फिर वहां से उसका मृत शरीर ही बाहर आया !
      संजू का फोन आ गया था, और वो जीप अड्डे पर इंतज़ार कर रहा था. श्रीमती जी ने जीप अड्डे पर छोड़ा, दोनों की आँखें भर आईं थीं ! कहते हुए उनका गया रुंध गया था, "अवनी के पापा, आप जा तो रहे हो लेकिन......" इससे आगे वो न कह पाई !
  कैसी विडम्बना है ! दैव क्या कर देता है, हम सोच भी नहीं सकते ! मैं उतने खतरों से खेलने जा रहा था, जहाँ, पल-पल, पग-पग पर मौत थी ! लेकिन इन्सान ये भूल जाता है कि मौत तो सब जगह है, उसके लिए क्या घर, क्या हिमालय ! मैं तो वहां से सही सलामत लौट आया जहाँ कुछ हो जाता तो कोई साधन न था, एक मात्र मेडिकल किट भी गोरखे ने गिरा दी थी, लेकिन कपिल सर्व सुविधा संपन्न हॉस्पिटल से सलामत न लौट पाया !

कपिल को गए भी साल होने को आया ! पिछले साल 29 अक्टूबर, दीवाली पर. अभी भी यकीं नहीं होता. लगता है वो हमारे साथ ही है आज भी. तुम हो न हो ! तुम्हारी यादें तो हमेशा साथ रहेंगी ! विनम्र श्रद्धांजलि !
    (बाकी दूसरे दिन,   शुभ रात्री !)
अगले लेख में--- ट्रेल्स पास के बारे में, यात्रा की तैयारियाँ, और यात्रा का पहला दिन, नई टिहरी से लुहारखेत DAY - 1......

13 comments:

  1. परमात्मा कपिल जी की आत्मा को अपने श्री चरणों मे जगह दे.आपकी यात्रा की और ट्रैल पास की भयावहता का अंदाजा तो गूगल भी बता देता है।आपके जज्बे को सलाम जो इतनी मुश्किलों के बाद भी अपनी यात्रा पूर्ण कर आये।

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  2. यात्रा शुरू करने से पहले कई तरह से उस माहौल के लिए तैयार होना पड़ता है किसी भी यात्रा को हल्के में नही लेना चाहिए खास कर मैदानी क्षेत्र के लोगो को पहाड़ी यात्रा करने से पहले पूरी तैयारी करनी चाहिए
    मेने अपनी पहली पहाड़ी यात्रा की घरवालो से परमिशन ओर उस माहौल के लिए अपने आप को ढालना बहुत बड़ा काम है

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  3. कपिल जी की आत्मा को प्रभु शांति दे ....यात्रा की शुरुवात बेहद रोचक है अब तो बस अगले भाग का इंतज़ार है

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  4. होनी को कोई नहीं टाल सकता, जिसकी जितनी लिखी है उतनी काटकर जाना है।
    आपका लेख पहली बार पढ़ रहा हूं एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि आपने आज लिखने की शुरुआत की है पूरा लेख पढ़ने के बाद आखिरी में ऐसा लगा जैसे लेखक अपने जीवन विवरण को कागज पर उतार रहा हूं।
    आप एक अध्यापक है गुरु है इसका लाभ और अनुभव आपके बहुत काम आएगा और आपने भी बहुत यात्रा कर रखी है हो सके 10/15 दिन महीने में एक दो बार उन यादों को कागजों पर उतरते रहिएगा।

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  5. Bahut hi sundar aur dil ko chu lene wala warnan

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  6. आपके बहनोई की आत्मा के लिये ईश्वर से प्रार्थना
    बहुत ही सजीब और सुंदर इस साहसिक दुर्गंम यात्रा का
    वर्णन
    बहुत भय बधाई आपके इस साहसिक अभियान के लिये

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  7. सब ईश्वर की माया है ।
    हम क्या हैं?
    कठपुतली ?

    नाचना ही है ।

    ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें ।

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  8. लेखनी बेहद शानदार है, मजा आ गया पढ़कर। अगले भागों का इन्तजार रहेगा। सन्दीप भाई का धन्यवाद यहाँ का रास्ता दिखाने के लिए। शुभकामनाएं और शान्ति।

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  9. बहुत बढ़िया गुरुदेव
    ईष्वर कपिल जी की आत्मा को शांति दे����

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  10. सभी का आभार !
    उत्साहवर्धन का शुक्रिया.
    ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहेंगे तो लेखनी को और बल मिलेगा !

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  11. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने सर जी जो होनी वो हो कर ही रहती है

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