Friday, November 3, 2017

ट्रेल्स पास यात्रा, भाग-३, न्यू टिहरी से यात्रा शुरू

    आज सुबह अचानक गर्दन की नस खिंच गयी. सुबह से ही बड़ा दर्द है. इस दर्द ने ट्रेल्स पास यात्रा की याद दिला दी, तो आज तीसरा भाग लिखने आखिरकार बैठ ही गया.
    दरअसल पिछले साल सितम्बर के मध्य में अचानक रात को सोते हुए गर्दन में नस खिंच जिसमे असहनीय दर्द होने लगा. यात्रा के दिन पास आने वाले थे, इस दर्द ने चिंता बहुत बढ़ा दी थी. कई इलाज किये, यहाँ तक कि नाई के पास भी गया. उस दुष्ट ने ऐसा झटका मारा कि दर्द और बढ़ गया. इस दर्द ने यात्रा के दौरान बहुत परेशान किया. विशेषकर टेंट में सोने में.
   जिन पाठकों को ट्रेल्स पास के विषय में जानकारी नहीं है, वे सोच रहे होंगे कि ये ट्रेल्स पास किस्सा आखिर है क्या ?  तो पहले इस पर ही कुछ भूमिका देनी चाहिए थी.

ट्रेल्स पास या पिंडारी कांडा, या पिंडारी कांठा

 ट्रेल्स पास कुमाऊं के बागेश्वर की पिंडर घटी को मिलम घाटी या जोहार क्षेत्र को जोड़ने वाला दर्रा है. प्राचीन काल में यह तिब्बत से मिलम होते हुए बागेश्वर के हाट(बाज़ार) में भोटिया, जोहारी,दारमा आदि लोगों द्वारा व्यापार हेतु यात्रा का मार्ग हुआ करता था. कालांतर में यह मार्ग दुरूह हो जाने के कारण व्यापारियों द्वारा छोड़ दिया गया. 100 साल के बाद इस दर्रे को सन 1830 में बागेश्वर के सूपी गाँव के बूढा मलक सिंह द्वारा पार किया गया. 1830 में ही इस दर्रे को कुमाऊं के प्रथम कमिश्नर जॉर्ज डब्ल्यू ट्रेल द्वारा पार करने की कोशिश की गयी, लेकिन उसे असफलता हाथ लगी. बाद में वह वापस लौटा और इसे फतह किया. 1926 में एक और अंग्रेज Hugh Ruttledge ने इसे पार किया. क्योंकि दुनिया की नज़र में इसे जॉर्ज ट्रेल लाया था, अतः इसके नाम पर इसका नाम ट्रेल्स पास पड़ गया. यह कुछ ऐसा ही है जैसे कि वास्कोडिगामा ने भारत को खोजा. वैसे भी २०० साल की अंग्रेजी दासता के दौर में सभी जगहों के नाम अंग्रेजों के ही नाम पर थे. वैसे इसका वास्तविक नाम पिंडारी कांठा, या पिंडारी कांडा है. यह दर्रा कोई सबसे ऊँचे दर्रों में से एक नहीं है. लेकिन इसकी कठिनता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि इसको सन 1830 के बाद से अब तक, पार करने के 90 प्रयास किये गए, जिनमे से आज तक 17 ही पार कर पाए. हमारा 15 वाँ सफल अभियान दल था. दो दल इसी साल सफल हुए हैं, उनमे एक सेना जैसे संगठन का था, और दूसरा तीन बार के ट्रेल्स पास विजेता ध्रुव जोशी जैसे गाइड और पर्वतारोही के मार्गदर्शन में गया था. यह है तो मात्र 5312 मीटर ऊँचा, लेकिन बहुत ही खतरनाक और कठिन दर्रा है. इस दर्रे को पार करने के लिए दो चीजों की बहुत आवश्यकता है. एक तो टेक्निकल पर्वतारोहण का कम से कम बेसिक नॉलेज, दूसरा मौसम आपका साथ दे. पर्वतारोहण का थोडा बहुत ज्ञान इसलिए क्योंकि इसमें सब कुछ है, ये मात्र एक ट्रैक नहीं है. इसमें ट्रैकिंग है, नदियों को पार करना है, रॉक क्लाइम्बिंग है, इसमें रॉक फॉल है, इसमें आइस फील्ड है, क्रेवास हैं, ऐवलांज है, आइस रेप्लिंग है, मने सब कुछ ! ट्रेल्स पास नंदा देवी और छंगुस पर्वत चोटियों के बीच एक खांच है, एक दर्रा है, लेकिन बिना रस्सियों पर चढ़े न तो चढ़ा जा सकता है, न ही उतरा जा सकता है.

  पिंडारी ग्लेशियर,सबसे अधिक लोग जाते हैं, इसके कई कारण हैं, एक तो यह सबसे सुगम है, वो इसलिए कि मात्र 45किमी के ट्रेक में कई रुकने के पड़ाव, टूरिस्ट बंगलो आदि हैं, अच्छा बना हुआ रास्ता है, खाना रहना मिल जाता है. आप मात्र एक छोटा सा बैग साथ में लेकर मजे से यह ट्रैक कर सकते हैं. दूसरे, पिंडारी के आस पास ही बहुत ही सुन्दर कफनी ग्लेशियर और सुन्दरढुंगा ग्लेशियर है. कफनी कोल से भी मिलम-जोहार की और निकला जा सकता है. पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा के दौरान नंदा देवी, नंदादेवी ईस्ट,(नंदा-सुनंदा), नंदा खाट, नंदा घुन्घटी, बलजोरी, छंगुस, आदि पर्वत शिखरों ने नयनाभिराम दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है.

यात्रा आरम्भ-

  रात सोते सोते शायद 3 बज गयी थी. सुबह साढ़े 5 बजे उठ गए थे. नहा धो के तैयार हुए, तब तक टीम लीडर नेगी जी और अन्य भी कई साथियों की कॉल आ गयी थी कि जल्दी पहुँचो भाई, 7 बजे उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री श्री दिनेश धनाई जी ने यात्रा को फ्लैग ऑफ करना था. सामान वगैरह उठा के बौराडी गोल चौराहे पे पहुंचे. वहां तब तक और लोगों ने फर्स्ट क्लास कुर्सियां वगैरह लगा के कार्यक्रम की तैयारी कर रखी थी. दो टाटा सूमो खड़ी थी, उनमे सामान डाला. होटल में नाश्ता बना था, अभी मंत्री जी के आने में थोडा समय था, तो लगे हाथ मैंने दो परांठे निगल लिए. मंत्री जी आये 15 मिनट का उनका कार्यक्रम हुआ, उन्होंने दो शब्द कहे, शुभकामनाएं दीं, झंडा लहराया, और यात्रा चल पड़ी. चौराहे पर काफी लोग जमा हो गए थे. 8 बज गए थे तो स्कूल बस और काफी ट्रैफिक हो गया था. बहरहाल, काफी सारे लोग हमारी इस यात्रा के गवाह बने थे.
   गोरखे मजे से आगे की सीटों पर बैठे हुए थे, उन्हें डांट कर पीछे भागना पड़ा. मूर्ख से, कोई कह रहा मुझे उलटी होती है शाब ! जैसे गाड़ी का किराया देकर कहीं सफ़र करने जा रहे हों और अपनी पहले आओ पहले पाओ के आधार पर अपनी पसंद की सीट हथिया लो !
  अगला पड़ाव श्रीनगर था जहाँ से कुछ सामान लेना था, टमाटर प्यूरीऔर किसी को शायद कुछ दवाइयाँ आदि. लेकिन मुझे न्यू टिहरी से ही सरदर्द आरम्भ हो गया था, रात को नींद पूरी न होने की वजह से. मैं चुपचाप आँखें बंद किये बैठा रहा. श्रीनगर पहुँचते पहुँचते पेट में भी दर्द होने लगा था. अलसर दर्द कर रहा था जो कि चिंता की बात थी. ये मैं अनुराग के अलावा किसी को बताना नहीं चाहता था, मेरी यात्रा खटाई में पड़ सकती थी. कर्णप्रयाग से आगे कहीं मच्छी-भात खाने की बात हुई थी, लेकिन गाड़ियों में आपसी सामंजस्य न होने के कारण, दूसरी गाडी पता नहीं कहाँ रुकी, हमने एक जगह गाड़ी रोक कर सादा खाना खा लिया था. खाना खाने से दर्द तो हल्का हुआ था, लेकिन मुझे पता था कि थोड़ी देर में पेट खाली होते ही दर्द फिर से तेज हो जायेगा. दवाइयाँ बैग में थीं, और बैग सूमो की छत पर बंधे थे. थोड़ी देर फिर सोने की कोशिश कर ही रहा था कि टायर ही पंचर हो गया. सड़क बहुत ख़राब थी, सड़क के चौड़ी करण का काम चल रहा था. आगे एक जगह रुक करके फिर पंचर भी बवाना पड़ा. लगभग एक घंटा ख़राब हुआ. ग्वालदम से आगे एक बार फिर गाड़ी में पंचर हुआ, फिर पंचर लगवाया. शाम होने लगी थी, अभी मंजिल बहुत दूर थी, अभी तो बागेश्वर भी नहीं आया था, फिर कपकोट, और तब कहीं लुहार खेत था.
  ओह !
लैपटॉप की बैट्री जाने वाली है, अब शेष फिर लिखूंगा ! एडिट भी बाद ही में होगा, शुभरात्री !